नील आर्म स्ट्रांग को कौन नहीं जानता है। इन्होंने अपने सपने को साकार करने के लिए बहुत संघर्ष किया और आखिरकार उन्होंने अपना सपना पूरा कर दिखाया। उनका सपना था कि यह एक दिन चांद पर अपना पहला कदम जरूर रखें और अपने देश का नाम रोशन करें। उन्होंने ऐसा किया भी कुछ इसी प्रकार से नील आर्मस्ट्रांग की बायोग्राफी भी काफी ज्यादा रोचक है।
और अगर आप भी नील आर्मस्ट्रांग की बायोग्राफी जानना चाहते हो और इनके बारे में और जानने की जिज्ञासा रखते हो तो आज हम आपको अपने इस लेख में Neil Armstrong ki biography के बारे में बताने वाले हैं और आपको आज इनकी बायोग्राफी पढ़कर काफी ज्यादा मोटिवेशन भी मिलेगा इसीलिए हम चाहते हैं कि आज आप इनकी बायोग्राफी को शुरू से अंत तक जरूर पढ़े ताकि आपको इनके जीवन से कुछ सीखने को मिले।
नील आर्म स्ट्रांग का संक्षिप्त जीवन परिचय
पूरा नाम | नील आर्म स्ट्रांग |
जन्मतिथि | 5 अगस्त 1930 |
जन्म स्थान | वेपकॉनेटा |
शिक्षा | बी ए और एम एस |
लोकप्रिय | प्रथम चंद्र यात्री |
पुरस्कार | प्रेजिडेंटल मैडल ऑफ फ्रीडम, कॉंग्रेसनल स्पेस मैडल ऑफ ऑनर |
नागरिकता | अमेरिकी |
मृत्यु | 25 अगस्त 2012 |
प्रारंभिक जीवन और परिवारिक जानकारी
अगर आपसे कोई पूछे कि Chand par kon-kon gaya hai तो आप नील आर्म स्ट्रांग का नाम सबसे पहले बताओगे तो चलिए हम इनके जीवन को और समीप से जानने का प्रयास करते हैं। नील आर्म स्ट्रांग महान अंतरिक्ष यात्री थे और इनका जन्म 5 अगस्त 1930 को ओहायो के वैपकोनेटा में हुआ था। इनके पिता का नाम स्टीफन कोएनिग आर्मस्ट्रांग और इनकी माता का नाम वियोला लुईस हां और यह अपने माता-पिता की सबसे बड़ी संतान थे।
इनकी एक बहन भी थी जिसका नाम जून और इनका एक भाई था जिसका नाम डीन था। इनकी बचपन से ही ख्वाहिश कि कि यह चांद पर जाने का अपना सपना साकार करेंगे और इसीलिए इन्होंने बचपन से ही महत्वपूर्ण कदम उठाने शुरू कर दिए और अपना पूरा ध्यान चांद पर जाने का यानी की उड़ान भरने पर केंद्रित कर दिया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
नील आर्म स्ट्रांग बहुत ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा को ओहियो के वैपकोनेटा में ब्लूम हाई स्कूल में पूरा किया। इन्होंने अपने सपने को साकार करने के लिए वर्ष 1947 में फ्लाइंग इंजीनियरिंग का कोर्स पर्ड्यू विश्वविद्यालय में दाखिला लेकर पूरा किया। 1949 में जब इन्होंने अपनी फ्लाइंग इंजीनियरिंग कोर्स को पूरा किया तब इन्हें सेवा में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया।
इन्होंने अपने 3 वर्षों के नौसेना के कार्यभार में लगभग कोरिया के ऊपर कुल 121 घंटे की उड़ान को पूरा किया था। और इतना ही नहीं 78 मिशन के लिए उन्होंने अपनी इतनी उड़ान को पूरा किया। इसके बाद नील आर्मस्ट्रांग ने लगभग 8 साल तक अमेरिकी नौसेना रिजर्व में लेफ्टिनेंट, जूनियर ग्रेड पद पर कार्य किया और इसके बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
फिर इन्होंने विश्वविद्यालय में दाखिला लिया जहां से इन्होंने वर्ष 1955 में अपने स्नातक की डिग्री को पूरा किया और उसके बाद इस महान अंतरिक्ष यात्री ने वर्ष 1970 में दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर ऑफ साइंस की डिग्री प्राप्त की।
अपोलो 11 मिशन और नील आर्मस्ट्रांग की कहानी
सोवियत संघ की सफलता के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने यह प्रण लिया कि वे सफलतापूर्वक चांद पर मनुष्य को बेच कर वापस लाने का कार्य करेंगे और दुनिया को अपने आप को साबित करके दिखाएंगे। राष्ट्रपति के इस संकल्प को पूरा करने के लिए उस समय करीब नासा के एजेंसी में इस प्रोजेक्ट को पूरा करने हेतु 5 लाख वैज्ञानिक 10 वर्षों के लिए कार्य पर लगाए गए। इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए सभी वैज्ञानिक चौबीसों घंटे कठिन परिश्रम करने लगे।
करीब 6 वर्षों के कड़ी मेहनत के बाद लूनर मॉडल को तैयार किया गया। इसके बाद बेहद शक्तिशाली इंजन कबशन भी सफलतापूर्वक तैयार कर लिया गया। इसकी गुणवत्ता की जांच करने के लिए लगभग 7 बार सफल परीक्षण करने का कार्य भी पूरा कर लिया गया। वह दिन आ गया जिस दिन नासा एजेंसी मानव को अपने स्पेस यान में चांद पर भेजने का काम करने वाली थी और 16 जुलाई, 1969 को केनेडी स्पेस सेंटर से अंतरराष्ट्रीय समयानुसार दोपहर 1:32 बजे को वह घड़ी आ चुकी थी जब सैटर्न 5 रोकेट से नील आर्मस्ट्रांग अपने साथियों के साथ चाँद की यात्रा पर रवाना होने वाले थे।
नील आर्मस्ट्रांग लूनर मॉडल
चांद पर जाने के लिए लॉन्चिंग की सारी प्रोसेस को टीवी पर लाइव स्ट्रीम किया जा रहा था और देश की करोड़ों जनता अपने सपने को साकार होते हुए देख रही थी। अपोलो 11 को जब अंतरिक्ष में जाने के लिए लॉन्च किया गया तब इसकी भयंकर आवाज से अगल बगल की बिल्डिंग है डगमगाने लगी और आकाश में एक हुंकार के साथ अपोलो 11 सफलतापूर्वक से लॉन्च हुआ। 19 जुलाई, 1969 के दिन अपोलो नील आर्मस्ट्रांग और दो साथियों समेत जैसे ही चाँद की कक्षा में दाखिल हुआ, अब नासा के सफल और परिश्रमी वैज्ञानिकों के सामने एक समस्या थी कि वह किस प्रकार से चांद पर सफलतापूर्वक लैंड कर सकें।
अपोलो 11 से लाइव तस्वीरें चांद पर से नासा को भेजी जा रही थी और नासा साफ-साफ देख पा रहा था कि चांद पर बहुत भारी भारी ऊपर खबर गड्ढे हैं जहां पर इस पेज की लैंडिंग करना लगभग नामुमकिन सा है परंतु नासा ने और इसके वैज्ञानिकों ने हार नहीं मानी और इन्होंने पहले ही कई बार अन्य अंतरिक्ष यान चांद पर भेजे थे और नासा के पास पुरानी तस्वीरें थी जहां पर सफल लैंडिंग को करने के लिए उसकी जांच पड़ताल करनी शुरू की गई और नासा को एक लैंडिंग करने योग्य स्थान भी मिल गया। अब अपोलो 11 ने अपना सफलतापूर्वक लैंडिंग करने का कार्य भी पूरा किया और दुनिया में नील आर्म स्ट्रांग के साथ अन्य उनके साथी अंतरिक्ष यात्री चांद पर अपना पहला कदम रखे।
नील आर्म स्ट्रांग जी का स्वर्गवास
आखिरकार नील आर्मस्ट्रांग जी ने अपना सपना साकार किया और मानव जाति को सफलता तक ले गए जहां पर मानव जाना चाहता था। नील आर्म स्ट्रांग जी का देहांत 82 वर्ष की आयु में 25 अगस्त 2012 को बाईपास सर्जरी के वजह से हो गया और उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा परंतु आज भी उनका नाम लिया जाता है एवं जब तक यह पृथ्वी और चांद पर जाने वाले लोगों को याद किया जाएगा तब तक इनका नाम सदा ऊपर रहेगा और उन्होंने मनुष्य जाति के हृदय पर अपनी छाप छोड़ी और संघर्ष से इच्छा पूर्ति करने की सीख दी।
अन्य पढ़े :-